अभी में स्त्री हूँ
अभी से हमें स्त्री बनना है क्योंकि “परिपक्व स्त्री” पर ही परमेश्वर की नजर आती है |
अभी में स्त्री हूँ, इस विषय में “अभी ”यह अल्फाज़ किस बात को दर्शाता है ? जी हाँ, इस विषय में “अभी” यह अल्फाज, उस अवस्था ( stage ) को बतलाता है, जब एक लड़की जवान हो जाती है यानि उसमे शारीरिक और मानसिक दृष्टि से बदलाव होता है अर्थात वह एक स्तर से दूसरी स्तर में जाती है, तब से वह एक लड़की नहीं बल्कि एक परिपक्व स्त्री कहलाती है | अधिकांश युवतियॉं, यह कहती है कि जब उन पर घर की जिम्मेदारी आएगी तब वह घर के काम — काज सीखेंगी या फिर कई सारी शादीशुदा स्त्रियाँ यह सोचती है कि जब उनके पति या सास — ससुर घर का काम करने के लिए कहेंगे तब वह घर के काम — काज करेंगी वरना ऐसी ही बैठी रहेंगी | लेकिन ऐसा बिलकुल भी नहीं है क्योंकि ऐसी सोच उस स्त्री के नासमझ को दर्शाती है |
वास्तविकता में, अभी आप स्त्री है यानि आप आज का काम आज ही पूरा करेंगी; उस काम को कल पर छोड़ नहीं देंगे लेकिन एक लड़की की सोच, आज के कामों को कल पर ढकेल देती है और वह कल के परिणाम के बारे में नही सोचती है |
आपको अपने ऊपर घोषणा करनी है कि “ अभी में स्त्री हूँ ”और उसी मन से अपनी चाल — चलन को चलना है जिससे की एक लड़की का जो स्वभाव होता है, वह आपके मन से और चाल — चलन से निकल जायेगा | निःसंदेह, आप एक परिपक्व स्त्री बन जायेंगी | यथार्थ, परमेश्वर अपने राज्य के कार्य के लिए एक परिपक्व स्त्री को ही इस्तेमाल करता है | अगर परमेश्वर के राज्य में कोई छोटी लड़की कार्य करेगी तो वह उस कार्य को पूरा कर नहीं पायेगी या फिर उसे बिगड़ सकती है | उदाहरण के तौर पर, एक माँ अपने नन्हीं बच्ची को किसी छोटी लड़की के हात में सँभालने के लिए नहीं देंगी, क्योंकि उस माँ को पता है कि वो छोटी लड़की उसे संभल नहीं सकती है | इसी प्रकार से परमेश्वर अपने राज्य के कार्य को किसी के हाथ में देने से पहले उसे परखता है कि क्या उसकी सोच एक छोटे लड़की की जैसी है या फिर एक परिपक्व स्त्री के जैसी है |
आज के इस युग के लिए इसकी आवश्यकता है कि अभी से हमें स्त्री बनना है क्योंकि “परिपक्व स्त्री” पर ही परमेश्वर की नजर आती है |
उत्पत्ति ३ : १५ “ और मैं तेरे और इस स्त्री के बीच में, और तेरे वंश और इसके वंश के बीच में बैर उत्पन्न करुंगा, वह तेरे सिर को कुचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगा | यह बायबल कि सबसे बड़ी प्रतिज्ञा जो है, वह स्त्री को दी गई है | यहाँ पर यीशु मसीह का जिक्र किया गया है अर्थात उसके इस धरती पर आने के बारे में कहा गया है | जी हाँ, प्रभु यीशु मसीह इस धरती पर एक स्त्री के द्वारा आए और स्त्री का नाम मरियम था | मरियम एक स्त्री थी, उसका चाल — चलन एक छोटे लड़की के समान नहीं था बल्कि एक परिपक्व स्त्री के समान थी इसलिए परमेश्वर ने उसे चुना | निःसंदेह, एक स्त्री के द्वारा ही परमेश्वर ने अपने प्रतिज्ञा को पूरा किया अर्थात एक स्त्री के द्वारा ही उद्धारकर्ता इस धरती पर आए | यह कितनी ख़ुशख़बरी की बात है कि प्रभु यीशु मसीह फिर से इस धरती पर आने वाले है, और इसे पूरा करने के लिए स्त्रियों को चुना गया है अर्थात हर एक स्त्री का यह एक उत्तम भाग है | आप अपने ऊपर घोषणा कर सकते है कि प्रभु यीशु मसीह ने फिर से इस धरती पर आने की जो प्रतिज्ञा की है उसे पूरा करने के लिए “ मुझे ”चुना है; यह मेरा उत्तम भाग है कि मुझे एक परिपक्व स्त्री बनकर इस कार्य को पूरा करना है अर्थात मुझे सुसमाचार का प्रचार करना है | वास्तविकता में, संसार में हर जगह अंधकार फैला हुआ है यानि गलत सोच — विचार और पाप है | इसलिए इस अंधकार में डूबे हुए लोगों को बाहर निकालने के लिए परमेश्वर ने परिपक्व स्त्रियों को चुना है जो डूबे हुए लोगों को इस अंधकार के दलदल से खींचकर बाहर निकाल सके | जिससे की परमेश्वर की, प्रभु यीशु मसीह की फिर से इस धरती पर आने वाली जो प्रतिज्ञा है वो पूरी हो और परमेश्वर के राज्य का कार्य जल्द से जल्द पूरा हो सके |
अब सवाल यह उठता है कि हमें परिपक्व स्त्री क्यों बनाना है ?
१) लड़कियाँ परमेश्वर की बातों को बड़े हलके में लेती है |
यहाँ पर एक स्त्री की परिपक़्वता ( maturity ) का जिक्र किया गया है | वास्तविकता में, एक लड़की की सोच और एक स्त्री की सोच में ज़मीन — आसमान का अंतर होता है | एक स्त्री की सोच में एक चीज या फिर एक व्यक्ति को देखने, सुनने, समझने और स्वीकारने का तरीका अलग होता है और उसके प्रति बोलने की प्रतिक्रिया या फिर उसपर कार्य करने की क्रिया अलग होती है | लेकिन लड़कियाँ बिलकुल इसके विपरीत होती है, जैसे की वह देखने, सुनने, समझने, स्वीकारने, कार्य करने की या फिर बोलने में स्त्रियों से विपरीत होती है | जब प्रेरित कोई निर्देश ( instructions ) देते है, तो उसे अधिकांश स्त्रियॉं हलके में लेती है, क्योंकि वह परिपक्व नहीं होती है; उनका स्वभाव छोटे लड़की के समान होता है | ख़ासकर के शादीशुदा स्त्रियाँ अपने जीवन में कई सारे साल गुजर ने के बाद भी अपने परिवार में छोटे लड़की के जैसे व्यवहार करती है जैसे की छोटी — छोटी बातों पर पति या फिर सास — ससुर से झगड़ा करती रहती है या फिर अपने ही बच्चों पर नकारात्मक शब्दों को बोलती रहती है |
जी हाँ, हम कई बार अपने घर — परिवार, अड़ोस- पड़ोस या फिर नौकरी के स्थान पर देखते है कि अधिकांश स्त्रियॉं उम्र में बड़ी तो होती है लेकिन उनका व्यवहार जो होता है वह एक छोटी लड़की के समान होता है | जैसे की वह बात करने के वक्त छोटी — छोटी बातों में कभी कभी गुस्से से बात करती है या फिर कभी नरमी से पेश आती है, अधिकांश शादीशुदा स्त्रियॉं घर के काम — काज के बजाय, T. V. Serials, Web Series या Facebook देखने में, मोबाइल में गेम खेलने में, Instagram में reels बनाने या देखने में अपने समय को बर्बाद करती है, या फिर अपने सहेली और परिवार वालों के साथ मोबाइल पर घंटो — घंटों तक बातें करती रहती है | जिससे की उनके घर में अस्वछता होती है, वह घर में स्वादिष्ट भोजन बनाने में रूचि नहीं रखती है, इसके बजाय वह अक्सर होटल से खाना मँगवाती है, ना ही वह अपने पति की मर्जी को पूरा करती है और ना ही वह अपने बच्चों के परवरिश पर ध्यान देती है और अगर उसके बच्चे पढाई में कमजोर है फिर भी उस स्त्री को कोई फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि वह संसार के बेमतलब कामों में व्यस्त होती है | वह इन परिणामों को देखती भी है और कहती कि सब घर में ऐसी ही चलता है, कहकर टाल देती है |
लेकिन “ परिपक्व स्त्री ”हमेशा अपने घर को साफ़ — सुथरा; रसोईघर को स्वच्छ और व्यवस्थित रखती है और “ घर में स्वादिष्ट भोजन “ बनाने का प्रयास करती रहती है जिससे की उसके पति और बच्चों का मन घर में बना रहे, अपने “ पति और सास — ससुर का आदर और सम्मान ’’ करती है; किसी के भी सामने उनकी बेइज्जती नहीं करती है, हमेशा अपने पति के मर्जी को पूरा करती रहती है, अपने बच्चों को पढ़ाई में आगे बढ़ाने के लिए वक्त निकालकर “खुद उन्हें पढ़ाती’’है और ख़ासकर के वह अपने बच्चों के उत्तम भविष्य के लिए उन्हें मोबाइल से दूर रखती है क्योंकि वह परिपक्व स्त्री अर्थात बुद्धिमान स्त्री कल के परिणाम को सोचकर इन सभी बातों को अपनी जिम्मेदारी समझती है | जब हम परिपक्व स्त्री बन जायेंगे, तब हम घर में ही नहीं बल्कि परमेश्वर के राज्य के लिए भी बहुतायत से इस्तेमाल हो जाएंगे |
आइये हम बायबल में से एक स्त्री को देखेंगे की उसने परमेश्वर के निर्देश (instructions ) को कैसे समझा |
लुका १७ : ३२ “ लूत की पत्नी को स्मरण रखो | इस वचन को, अगर गहराई से देखेंगे तो हमें साफ़ रीति से पता चल जाता है कि वचन में उस स्त्री का नाम दर्ज नहीं किया गया है फिर भी उसे स्मरण रखने के लिए कहा गया है | हालाँकि, पुराने नियम में यह घटना हो चुकी थी लेकिन नए नियम में फिर से उस स्त्री को स्मरण रखने के लिए कहा गया है | आख़िरकार, क्यों उस स्त्री को परमेश्वर एक चेतावनी के रूप में स्मरण रखने के लिए कह रहा है ?
इस सवाल का जवाब उत्पत्ति १९ : १२ — २६ में देखेंगे।
इस बायबल की पूरी आयत में हम यह देख सकते है कि सदोम और आमोरा नामक जो नगर था, वह पूरे पाप से भरा हुआ था और वहाँ पर समलैंगिगता ( homosexuality ) आम बात थी | निःसंदेह, उस नगर में लोगों का पाप इतना भारी हो गया था, जिससे की उस धरती की चल्लाहट परमेश्वर को सुनाई दे रही थी | अर्थात वहाँ पर उन लोगों को हरएक गंदे किस्म के काम करने की आदत सी हो गई थी, जिससे की वे लोग परमेश्वर के भय से दूर हो गए थे | तब परमेश्वर ने उस नगर का गंधक और अग्नि से नाश करने के बारे में सोचा, तब अब्राहम ने मध्यस्था की और कहा कि दृष्टों के संग धर्मी लोगों का नाश न हो क्योंकि उस नगर में लूत नामक अब्राहम के भाई का बेटा परदेसी रहता था; जिसे मध्यस्था के द्वारा अब्राहम पूरी रीती से बचाने की कोशिश कर रहा था | आखिरकार, परमेश्वर ने उस अब्राहम की मध्यस्था को सुना; लूत और उसके परिवार पर कृपादृष्टि की और उन्हें बचाने के लिए दो स्वर्गदूतों को उस नगर में भेजा | जैसे परमेश्वर ने उन स्वर्गदूतों को निर्देश दिया था कि नगर का नाश करने से पहले धर्मियों को यानि लूत और उसके परिवार को उस नगर से बाहर निकाला जाये और फिर उन दृष्ट लोगों का नाश करे |
वैसे ही निर्देशानुसार उन दो स्वर्गदूतों ने लूत से कहा कि अपने घर — परिवार और रिश्तेदारों समेत नगर से बाहर निकल जाओ क्योंकि परमेश्वर ने उन्हें इस नगर का नाश करने की आज्ञा दी है | उसी समय लूत ने भी अपने रिश्तेदारों को बचाने के लिए उनके घर जाकर, उनसे अपने साथ नगर से बाहर निकलने के लिए कहा, लेकिन उन रिश्तेदारों ने उस पर विश्वास न किया क्योंकि ऐसी भयानक घटना इस पृथ्वी पर कभी नहीं हुई थी; जिससे की वे लूत को ठट्ठा करने वाला जान पड़े | इसी कारन लूत को उस नगर से बाहर निकलने की इच्छा नहीं थी इसलिए वह बाहर निकलने में विंलब कर रहा था लेकिन यहाँ पर समय बीत गया, और सुबह हो रही थी; जिससे कि स्वर्गदूतों ने उसे कहा कि नगर से बाहर चला जा; नहीं तो तू भी इस नगर समेत नाश हो जायेगा |
परमेश्वर की लूत पर “ दया ” थी इसलिए उन स्वर्गदूतों ने उसे और उसके पत्नी और दो बेटियों को हाथ पकड़कर उस नगर से बाहर निकाल दिया ताकि उनका नाश न हो | उन स्वर्गदूतों ने उन्हें निर्देश और चेतावनी दि की अपना प्राण ले कर भाग जा; “ पीछे की और न ताकना “, और तराई भर में न ठहरना; उस पहाड़ पर भाग जाना, नहीं तो तू भी भस्म हो जाएगा | जैसे ही लूत और उसकी पत्नी और बेटियाँ उस नगर से काफी दूर चले गए, तब आकाश से गंधक और अग्नि बरसने लगे | इसी दौरान लूत की पत्नी ने पीछे मुड़कर देखा और वह नमक का खंबा बन गई |
अब यहाँ पर यह सवाल उठता है कि स्वर्गदूतों ने लूत और उसके परिवार का नाश न हो इसलिए खुद उनका हाथ पकड़कर उन्हें उस नगर से बाहर निकला था अर्थात उनकी जान बचाई थी, फिर भी लूत की पत्नी नमक का खम्बा क्यों बन गई अर्थात क्यों वह अपनी जान से हाथ धो बैठी ?
हालाँकि, लूत की पत्नी ने स्वर्गदूतों को देखा था और उनके सारे निर्देश ( instructions ) और चेतावनी ( warning ) को भी सुना था; और स्वयं स्वर्गदूतों ने उसके हाथ को पकड़कर उसे नगर के बाहर निकाला था; फिर भी वह उन निर्देश का पालन कर नहीं पाई और चेतावनी को गंभीरता से ग्रहण कर नहीं पाई | इस सवाल का जवाब काफी सरल है, लूत के पत्नी ने उन स्वर्गदूतों के निर्देश और चेतावनी को, जो परमेश्वर के ओर से थी, उसे हलके में लिया क्योंकि वह परिपक्व स्त्री नही थी | जी हाँ, वह शादीशुदा स्त्री थी और उसके दामाद भी थे लेकिन उसका स्वभाव जो था वह एक परिपक्व स्त्री के जैसे नहीं बल्कि एक छोटी लड़की के समान था इसलिए वह उन निर्देश और चेतावनी को समझ नहीं पाई, जो परमेश्वर की ओर से ठहराई हुई थी |
प्रेरित के निर्देश और चेतावनी को हलके में नहीं लेना चाहिये |
कई बार प्रेरित जी निर्देश देते है कि हमें रोज वचन को पढ़ना है और उसपर मनन भी करना है लेकिन यह आत्मिक बातों को हम हलके में लेते है |इसी प्रकार से, जब कलीसिया में प्रेरित जी हमें कुछ निर्देश और चेतावनी देते है, तब उसे ध्यान से सुनना है और गंभीरता से पालन भी करना है; ना की लूत के जैसे उसे कार्य करने में विंलब करना है और ना ही लूत के रिश्तेदारों के जैसे हलके में लेना है | जी हाँ, जो परिपक्व स्त्री होती है वह निर्देश और चेतावनी को हलके नहीं बल्कि गंभीरतापूर्वक और महत्वपूर्णता से लेती है, लेकिन लड़कियों की सोच इसके विपरीत होती है वे उसे हलके में लेती है | कई बार हम निर्देश और चेतावनी को अज्ञानता के कारन समझ ही नहीं पाते है और लूत के रिश्तेदारों के जैसे ठट्ठा में उड़ाते है | प्रेरित जी कई बार वचन, प्रार्थना और उपवास करने का निर्देश देते है, लेकिन अधिकांश विश्वासी इसे पूरा करने में चूक जाते है | अधिकांश बार हम प्रेरित जी के निर्देश और चेतावनी को लूत के पत्नी के जैसे अनसुना करते है जिससे की हम ख़तरे और मुसीबत में पड़ जाते है | इसलिए हमें नए नियम में ख़ासकर लूत के पत्नी को याद करने के लिए कहा गया है |
वास्तविकता में, मरियम को भी स्वर्गदूतों ने निर्देश दिया था और उसने उनका पालन भी किया लेकिन लूत के पत्नी ने निर्देश और चेतावनी का पालन नहीं किया और वह नमक का खंबा बन गई | आज भी कई सारी स्त्रियॉं ऐसा सोचती है कि अगर आज एक दिन प्रार्थना या उपवास नहीं किया तो क्या होगा, वचन नहीं पड़ा तो क्या होगा, एक रविवार कलीसिया में नहीं गए तो क्या होगा, दशमांश नहीं बोऊ तो क्या होगा; सिर्फ एक दिन ना करने से कुछ नहीं बिगड़ेगा और ना ही कोई कुछ बोलेगा | निःसंदेह, ऐसी सोच वाली स्त्रियॉं परिपक्व नहीं होती है | इसलिए बायबल हमें बार बार लूत के पत्नी को स्मरण करने के लिए कहता है | आज के युग में हरएक स्त्री को इसे सीखने की जरुरत है कि वह “ अभी “ से स्त्री है, ना की आनेवाले दिनों में | स्त्रियों को उनके सोच — विचार, स्वभाव और चाल — चलन में परिपक्व होना जरुरी है |
AWJM का उद्देश्य
यह बहुत दुःखत घटना है कि लूत की पत्नी नमक का खंबा बन गई, जिसे स्वयं स्वर्गदूतों ने उसका हाथ पकड़कर उस नगर से बाहर निकाला था, जो गंधक और अग्नि से नाश होने वाला था | लूत के पत्नी के प्रति परमेश्वर की यह उद्देश्य बिलकुल भी नहीं थी लेकिन उस स्त्री ने निर्देश और चेतावनी का पालन न करने से उसके साथ ऐसा हुआ |
आज भी परमेश्वर की स्त्रियों के प्रति यह बिलकुल भी उद्देश्य नहीं है की वह लूत की पत्नी के समान नमक का खंबा बन जाए अर्थात निष्क्रिय बन जाए | परमेश्वर का स्त्रियों के प्रति यह उद्देश्य है कि हर एक स्त्री आशीष पाए, आगे बढे, एक स्तर से दूसरे स्तर पे जाए | इसलिए परमेश्वर ने प्रभु यीशु मसीहा के जन्म के लिए मरियम को चुना यानि एक परिपक्व स्त्री को चुना और प्रभु यीशु मसीहा के मारे जाने, गाड़े जाने और तीसरे दिन जी उठने के बाद सबसे पहले एक स्त्री को ही यानि मरियम मगदलीनी को दर्शन दिया | परमेश्वर स्त्रियों से यही चाहता है कि उसके द्वारा घर — परिवार — रिश्तेदार, नगर, राज्य, देश आशीषित हो |
इसी तरह से, प्रेरित जी ने भी हरएक स्त्री के लिए उद्देश्य रखा हुआ है; कलीसिया की हरएक स्त्री परमेश्वर के राज्य के लिए बढ़कर कार्य करे, अपने पति और बच्चों के आशीष का कारन बने, मध्यस्था करने वाली और सुसमाचार फैलाने वाली स्त्री बने और देश के उद्धार का कारन बने, प्रेरित के दर्शन के साथ पुरे तन — मन — धन से जुडी रहे, शारीरिक और आत्मिक दोनों क्षेत्र में उन्न्नति करती ही रहे, अगर अपने जीवन में गिर भी जाए फिर भी उसी जगह पर गिर कर पड़ी न रहे बल्कि फिर से अपने स्थान से उठकर चलती और दौड़ती रहे और साथ में दूसरों को भी दौड़ती रहे |
अभी इसी वक्त हम स्त्रियाँ फैसला करेंगे की, आज से हम किसी भी निर्देश या चेतावनी को हलके में नहीं लेंगे वरन उसका गंभीरतापूर्वक पालन करेंगे | अपने ऊपर घोषणा कीजिये की, मैं अभी स्त्री हूँ, मेरे अंदर एक परिपक्व स्त्री के समान सोच — विचार है और परमेश्वर मुझे बड़े — बड़े कार्य करने के लिए इस्तमाल कर रहे है | विशेषतः जो प्रेरित जी ने मेरे लिए उद्देश्य रखा है, उस उद्देश्य को में देख और सोच रही हूँ और उसी से ही जुडी हुई हूँ और उसी के लिए में जी रही हूँ | आमेन